धर्मेंद्र- वह आख़िरी सूरज जो डूबकर भी रोशन ही रहा
भारतीय सिनेमा का आसमान आज थोड़ा और खाली हो गया।
धर्मेंद्र, वह आदमी जिसकी मुस्कान में गांव की गर्माहट थी और whose personality carried the spirit of a lion, आज इस दुनिया से विदा हो गया। उनके जाने से बॉलीवुड केवल एक अभिनेता नहीं खो रहा — हम एक दौर खो रहे हैं, एक मिट्टी खो रहे हैं, एक पहचान खो रहे हैं।
एक आम गांव के लड़के से सिनेमा के अमर चेहरों तक
धर्मेंद्र की कहानी हमेशा फिल्मों से नहीं शुरू होती —
वह शुरू होती है एक खेत की पगडंडी से,
जहाँ एक नौजवान लड़का सपनों को जेब में नहीं, दिल में लेकर चलता था।
जब पहली बार उन्होंने कैमरा देखा, तो उसमें अपना चेहरा नहीं, अपनी मेहनत की छाप देखी।
धीरे-धीरे वही लड़का भारतीय सिनेमा का सबसे प्यारा और सबसे सच्चा हीरो बन गया — वह ही-रो नहीं जो बनावट से चमके, बल्कि वह हीरो जो अपनी ही सादगी से जगमगाए।
एक ही अभिनेता में पाँच चेहरे — और सभी असली
धर्मेंद्र की खास बात यह थी कि वह “एक्टिंग” करते नहीं दिखते थे।
उनकी हंसी असली लगती थी,
उनका गुस्सा असली लगता था,
उनका रोमांस ऐसा लगता था जैसे किसी को सचमुच मुस्कुराना सिखा रहे हों।
फ़िल्मों में वे कभी मिट्टी की खुशबू थे, कभी शहर की धड़कन।
एक पल में मजबूत, अगले पल में नर्म —
जैसे कोई पुराना पेड़ जो छाया भी दे और हवा भी।
परिवार: उनकी असली ताकत
फिल्मों में चाहे जितनी रोशनी रही हो,
धर्मेंद्र की असली चमक हमेशा उनके परिवार से आई।
उनकी ज़िंदगी में दो घर थे,
लेकिन दिल — सभी के लिए एक ही।
उन्होंने अपने बच्चों को सिर्फ नाम नहीं दिया,
एक विरासत दी —
मेहनत की, इज्जत की, और इंसानियत की।
घरेलू वीडियो में उनका अपने पौधों को पानी देना,
बेटों का कंधा पकड़कर हँसना,
और पत्नी का हाथ थामकर चलना —
ये सब बताते थे कि स्टारडम बड़ा हो सकता है,
लेकिन आदमी उससे बड़ा हो सकता है।
आखिरी दिनों में भी वही सादगी
अंतिम दिनों में जब तबीयत कमजोर हुई,
फिर भी धर्मेंद्र का चेहरा अपनी पहचान नहीं खोता —
वही नरम आँखें, वही धीमी मुस्कान, वही सरलता।
कहते हैं उन्होंने आखिरी हफ्तों में
पुरानी कविताएँ सुनीं,
अपने खेतों की बातें कीं,
और जिंदगी को शांत होकर देखा —
जैसे कोई लंबी यात्रा के बाद घर पहुँच रहा हो।
उनका जाना सिर्फ एक समाचार नहीं
धर्मेंद्र का जाना सिर्फ़ स्क्रीन से एक चेहरा मिटना नहीं है —
यह उस पीढ़ी का जाना है जिसने
काम को पूजा,
सादगी को सम्मान,
और इंसानियत को अपनी पहचान बनाया।
आज जब उनके बारे में लिखा जा रहा है,
तो यह समझ आता है कि
कुछ लोग मरते नहीं —
वे सिर्फ़ दुनिया बदलते हैं,
अपनी रोशनी हमारे भीतर छोड़ जाते हैं।
धर्मेंद्र अब इतिहास नहीं — विरासत हैं
उनकी फिल्मों को शायद नए दर्शक देखेंगे,
लेकिन धर्मेंद्र को समझने के लिए
फिल्में काफी नहीं —
दिल चाहिए।
क्योंकि वह अभिनेता नहीं,
एक अनुभव थे।
और अनुभव मरते नहीं —
वे पीढ़ियों तक सांस लेते हैं।
धर्मेंद्र जी, आप चले गए —
पर आपकी गरमी, आपकी सादगी, आपकी मुस्कान
हमारे यहां हमेशा जीवित रहेगी।
OM SHANTI.

