26 नवंबर 2025 : भारत ने मनाया 76वाँ संविधान दिवस — कर्तव्य, अवसर और प्रतिबद्धता
आज, 26 नवंबर 2025, पूरे देश में 76वाँ संविधान दिवस मनाया गया — एक ऐसा दिन जो हमें याद दिलाता है कि हमारा संविधान सिर्फ़ काग़ज़ों का दस्तावेज़ नहीं, बल्कि लाखों लोगों की उम्मीदों, अधिकारों और कर्तव्यों का सांझा बंधन है।
यह दिन खास क्यों है –
26 नवंबर 1949 को, भारत के संविधान की प्रस्तावना (Preamble) को पहली बार संविधान सभा में पारित किया गया था।
26 जनवरी 1950 को वही संविधान लागू हुआ — भारत एक स्वतंत्र, प्रभुत्व-संपन्न, पंथनिरपेक्ष गणतंत्र बना।
हर साल 26 नवंबर को हम संविधान दिवस मनाकर संविधान निर्माताओं, उनके आदर्शों और मूल्यों को याद करते हैं।
आज जब 76वाँ संविधान दिवस है, तो यह सिर्फ उत्सव नहीं — यह एक पुनरावलोकन, एक प्रतिबद्धता और एक अवसर है: यह देखने का कि हम संविधान के मूल सिद्धांतों — लोकतंत्र, समानता, न्याय, स्वतंत्रता, और बंधुत्व — को कितना जीवित रख पाए हैं।
2025 का संविधान दिवस: क्या है बदलता परिप्रेक्ष्य
सामाजिक जागरुकता में बढ़ोतरी
इस बार, कई स्कूलों, कॉलेजों और सामाजिक संस्थाओं ने सिर्फ समारोह नहीं किए — उन्होंने डिबेट, सेमिनार, वीडियो कॉन्फ्रेंस, लोकतांत्रिक अधिकारों और कर्तव्यों पर चर्चा तथा युवा नागरिकों की भागीदारी बढ़ाने की पहल की।
इस प्रकार संविधान दिवस अब केवल एक दिन का कार्यक्रम नहीं — बल्कि लगातार चलने वाली नागरिक शिक्षा का हिस्सा बन रहा है।
फोकस: संवैधानिक अधिकार + डिजिटल डेटा
2025 में भारत में डिजिटल इंडिया और डेटा-प्रोटेक्शन जैसे विषय बहस में रहे। इस बार कई कार्यक्रमों में यह बात उठी कि —
“क्या हमारा संविधान (और कानून) डेटा, गोपनीयता, आधुनिक चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त हैं?”
युवा प्रतिनिधियों और नागरिक समूहों ने इस पर विचार किया — जिससे आज संविधान दिवस सिर्फ इतिहास नहीं, भविष्य की चुनौतियों से जूझने का दिन भी बन गया।
न्याय और समानता: आवाज़ें उठीं जोर से
दलित, आदिवासी, महिला, LGBTQ+ समुदायों से जुड़े विचारकों ने संविधान के fundamental rights और equality के प्रावधानों पर पुनरावलोकन और जागरुकता की अहमियत को दोहराया।
कहा गया कि संविधान हमें सिर्फ अधिकार नहीं देता — बल्कि हमारी विविधता को स्वीकार करने, सम्मान देने और हर नागरिक को समान अवसर देने की जिम्मेदारी भी देता है।
🇮🇳 संविधान से जुड़ा हर नागरिक — यह है हमारा कर्तव्य
संविधान दिवस हमें याद दिलाता है कि जब हमारा संविधान बना था, तब देश के लोग विभिन्नता में एकता की कसमें खाईं।
इस 76वें स्थापना-दिवस पर, हमें खुद से सवाल करना चाहिए:
क्या मैंने अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों को निभाया है?
क्या मैंने संविधान में निहित “न्याय, आज़ादी, समानता, बंधुत्व” के आदर्शों को सामाजिक व्यवहार में उतारा है?
क्या मैं अपनी आवाज़ का उपयोग उन लोगों के लिए कर रहा हूँ जो हाशिए पर हैं — ताकि वे भी संविधान की सुरक्षा और सम्मान का हिस्सा बन सकें?
निष्कर्ष — संविधान सिर्फ दस्तावेज़ नहीं, यह हमारी ज़िम्मेदारी है
76वें संविधान दिवस पर, जब हम झंडा-फहराते हैं, प्रस्तावना पढ़ते हैं, और संविधान की प्रतिज्ञा लेते हैं — तो वह सिर्फ एक औपचारिकता नहीं होनी चाहिए।
वह हमारी ज़िम्मेदारी होनी चाहिए — अपने अधिकारों की रक्षा करने की, अपने कर्तव्यों को निभाने की, और उस संविधान के मूल्यों को हर दिन ज़िंदगी में लाने की।
क्योंकि संविधान — हमारा, आपका, हर नागरिक का — वह आधार है जो हमें जोड़ता है।
और हर बार हम जब उसके आदर्शों पर खरे उतरने का प्रयास करते हैं, हम अपने देश को बेहतर बनाते हैं।
संविधान दिवस की शुभकामनाएँ — आइए इसे सिर्फ एक दिन नहीं, हर दिन जियें।

