मुंबई के फाइनेंसियल एक्सपर्ट मोनिश गोसर ने मध्यम वर्ग को अपने वित्तीय संकट के लिए स्यंव को ही जिम्मेदार बताया है। मि. गोसर का कहना है कि लोग क्रेडिट को आराम और स्टेटस को जरूरत समझने लगे हैं। गोसर के मुताबिक , दिखावे और गलत आदतों के कारण लोग खुद को कर्ज में डूबा रहे हैं। मिडिल क्लास के बीच क्रेडिट कार्ड का कर्ज तेजी से बढ़ता जा रहा है।
गोसर के मुताबिक लोग 10 लाख रुपये की कार को कड़ी मेहनत का फल मानते हैं जो की पूरी तरह गलत है। गोसर ने मध्यम वर्ग की मानसिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाया है, जो क्रेडिट को अपने आराम और स्टेटस को अपनी जरूरत समझता है। गोसर के मुताबिक , असली प्रॉब्लम महंगाई या टैक्स नहीं, बल्कि लोगों की यह सोच है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लोग अपनी वित्तीय स्थिति के लिए खुद ही जिम्मेदार हैं।
गोसर आगे बताते है कि भारत का मध्यम वर्ग अपनी वित्तीय प्रॉब्लम का जिम्मेदार में खुद ही है। उन्होंने अपने एक पुराने दोस्त का उदाहरण दिया जो करीब 15 लाख रुपये सालाना कमाता है । उसने एक नई कार खरीदी, जबकि वह पुरानी कार भी खरीद सकता था। मेरे मित्र ने कहा, ‘मैं इसे डिजर्व करता हूं।’ गोसर ने इस पर जवाब दिया, ‘इसी तरह सिस्टम जीतता है।’
दिखावे की चाह में कर्ज में डूब जाते हैं लोग –
गोसर की मुताबिक भारतीय पेशेवर लोग बढ़ती लागत से परेशान नहीं हैं, वे अपनी आदतों, जैसे कि बिना सोचे-विचारे खर्च करना, दिखावे पर ज्यादा ध्यान देना और जरूरत और शौक के बीच अंतर न कर पाने के कारण लोग कर्ज में डूबते जाते हैं। गोसर लिखते हैं, ‘हमने चाहतों को जरूरत समझ लिया। हमने इंस्टाग्राम , फेसबुक को अपने वित्तीय लक्ष्य तय करने दिए। हमने भावनाओं में बहकर गलत फैसले लिए। और अपने वित्तीय गणित को नजरअंदाज किआ ।
भारत में क्रेडिट कार्ड कर्ज सिर्फ 4 सालों में 2.92 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। पर्सनल लोन में भी 75% की बढ़ोतरी हुई है। गोसर का कहना है कि किसी दूसरे ने लोगों को कर्ज लेने के लिए मजबूर नहीं किया। वह लिखते हैं, ‘बैंकों ने हमें फंसाया नहीं। उन्होंने रस्सी दी। हमने गांठ बांध दी।’ दूसरे आसान शब्दों में कहें तो बैंकों ने कर्ज के तौर पर हमें रस्सी का फंदा दिया। हमने उसे गले में खुद कस लिया।

